Saturday, January 1, 2011

सर्द-पौष की सुबह


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ओस की बूँद,जो टपकी  हैं,अभी ही 
नाज़ुक पंखुड़ी  के  माथे पर,
 सिहर गयी  है  शाख तक
उस  कोमल अहसास से!
अंगडाई ले, उठी  है कलियाँ!
मुस्काती गीली अलकों से,
बूँद खिलखिलाती हुई  
ढुलकती है कोपल पर!
गोद में पत्तों की,छिपती 
खेलती,दुलराती हवा ,
हलकी सी गुदगुदाती तपन  
करतीं हैं चुहल मोती  से
मोती,जो बिखर जायेंगे
खुशबुओं की तितली बन  
इंतज़ार करेंगी कलियाँ
उस भीगते अहसास का  
मुस्कुराते हुए फिर से
 कल सुबह होने तक ....
                           नए वर्ष की शुभकामनायें